लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में
फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा, कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तिहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं, वो सुना करो, जो सुना नहीं, वो कहा करो
ये ख़िज़ां की ज़र्द-सी शाल में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा
कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां
मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला
तमाम रिश्तों को मैं, घर में छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे, कोई अजनबी न मिला
ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने
बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वही न मिला
बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा, और मुझे कभी न मिला
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते।
पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते।
दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते।
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह है
ये आग लगाते है बुझाने नहीं आते।
क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते।
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते।
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता
कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है
कहा से आई ये खुशबू ये घर की खुशबू है
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है
उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है
तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है
कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये
अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये
समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये
मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाये
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा
बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा
मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
खुदा इस शहर को महफूज़ रखे
ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है
मै तुझसे रोज़ मिलना चाहता हूँ
मगर इस राह में खतरा बहुत है
मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत है
इसे आंसू का एक कतरा न समझो
कुँआ है और ये गहरा बहुत है
उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है
समंदर है मगर प्यासा बहुत है
मै एक लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है
मेरा हँसना ज़रूरी हो गया है
यहाँ हर शख्स संजीदा बहुत है
मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा
मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा
खाक जब खाक में मिल जाऐगी तब पूछेगा
घर बसाने में ये खतरा है कि घर का मालिक
रात में देर से आने का सबब पूछेगा
अपना गम सबको बताना है तमाशा करना,
हाल-ऐ- दिल उसको सुनाएँगे वो जब पूछेगा
जब बिछडना भी तो हँसते हुए जाना वरना,
हर कोई रुठ जाने का सबब पूछेगा
हमने लफजों के जहाँ दाम लगे बेच दिया,
शेर पूछेगा हमें अब न अदब पूछेगा
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएंगे
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएंगे
रोयेंगे बहुत लेकिन आंसू नहीं आयेंगे
कह देना समंदर से हम ओस के मोती है
दरया कि तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धुप के छप्पर हों या छाओं कि दीवारें
अब जो भी उठाएंगे मिल जुल के उठाएंगे
जब साथ न दे कोई आवाज़ हमे देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठाएंगे
खुशबू कि तरह आया वो तेज़ हवाओं में
खुशबू कि तरह आया वो तेज़ हवाओं में
मांगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में
तुम छत पे नहीं आये में घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत भटका सावन कि घटाओं में
इस शहर में एक लड़की बिलकुल है ग़ज़ल जैसी
बिजली सी घटाओं में खुशबू सी हवाओं में
मौसम का इशारा है खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों कि खताओं में
भगवान् ही भेजेंगे चावल से भरी थाली
मज़लूम परिंदों कि मासूम सभाओं में
दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेजी दवाओं में
आंसुओं से धूलि ख़ुशी कि तरह
आंसुओं से धूलि ख़ुशी कि तरह
रिश्ते होते है शायरी कि तरह
हम खुदा बन के आयेंगे वरना
हम से मिल जाओ आदमी कि तरह
बर्फ सीने कि जैसे - जैसे गली
आँख खुलती गयी कली कि तरह
जब कभी बादलों में घिरता हैं
चाँद लगता है आदमी कि तरह
किसी रोज़ किसी दरीचे से
सामने आओ रोशनी कि तरह
सब नज़र का फरेब है वरना
कोई होता नहीं किसी कि तरह
ख़ूबसूरत उदास ख़ौफ़ज़दा
वोह भी है बीसवीं सदी कि तरह
जानता हूँ कि एक दिन मुझको
वो बदल देगा डायरी कि तरह
है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है
है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिज़ाज सी शाम है
कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें
ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मतलबों का सलाम है
यूँ ही रोज़ मिलने कि आरज़ू बड़ी रख रखाव कि गुफ्तगू
ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है
वो दिलों में आग लगायेगा में दिलों कि आग बुझाऊंगा
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है
न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल कर
कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज कि शाम कर
कोई नग्मा धुप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम कि छाँव सा
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है
किसे खबर थी तुझे इस तरह सजाऊंगा
किसे खबर थी तुझे इस तरह सजाऊंगा
ज़माना देखेगा और में ना देख पाउँगा
हयातो मौत फिराको विसाल सब यकजा
मैं एक रात में कितने दिये जलाऊँगा
पला बड़ा हूँ अभी तक इन्ही अंधेरों में
मैं तेज़ धुप से कैसे नज़र मिलाऊंगा
मिरे मिज़ाज कि ये मादराना फितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत* मैं भूल जाऊँगा
तुम एक पेड़ से वाबस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ बहुत दूर दूर जाऊँगा
मीरा ये अहद है मैं आज शाम होने तक
जहाँ से रिज़क लिखा है वहीँ से लाऊंगा
* अज़ीयत - दुःख
कोई न जान सका वो कहाँ से आया था
कोई न जान सका वो कहाँ से आया था
और उसने धुप से बादल को क्यों मिलाया था
यह बात लोगों को शायद पसंद आयी नहीं
मकान छोटा था लेकिन बहुत सजाया था
वो अब वहाँ हैं जहाँ रास्ते नहीं जाते
मैं जिसके साथ यहाँ पिछले साल आया था
सुना है उस पे चहकने लगे परिंदे भी
वो एक पौधा जो हमने कभी लगाया था
चिराग़ डूब गए कपकपाये होंठों पर
किसी का हाथ हमारे लबों तक आया था
तमाम उम्र मेरा दम इसी धुएं में घुटा
वो एक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया था
बाहर ना आओ घर में रहो तुम नशे में हो
बाहर ना आओ घर में रहो तुम नशे में हो
सो जाओ दिन को रात करो तुम नशे में हो
दरिया से इख्तेलाफ़ का अंजाम सोच लो
लहरों के साथ साथ बहो तुम नशे में हो
बेहद शरीफ लोगो से कुछ फासला रखो
पी लो मगर कभी ना कहो तुम नशे में हो
कागज का ये लिबास चिरागों के शहर में
जरा संभल संभल कर चलो तुम नशे में हो
क्या दोस्तों ने तुम को पिलाई है रात भर
अब दुश्मनों के साथ रहो तुम नशे में हो
चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ
चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ
मैं न इस बात पे नाज़ाँ हूँ न शर्मिंदा हूँ
दफ़न हो जाएगा जो सैंकड़ों मन मिट्टी में
ग़ालिबन मैं भी उसी शहर का बाशिन्दा हूँ
ज़िंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन
लोग कहते हैं कि मैं तेरा नुमाइन्दा हूँ
फूल सी क़ब्र से अक्सर ये सदा आती है
कोई कहता है बचा लो मैं अभी ज़िन्दा हूँ
तन पे कपड़े हैं क़दामत की अलामत और मैं
सर बरहना यहाँ आ जाने पे शर्मिंदा हूँ
वाक़ई इस तरह मैंने कभी सोचा ही नहीं
कौन है अपना यहाँ किस के लिये ज़िन्दा हूँ
गुलों कि तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना
गुलों कि तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना
किसी कि ज़ुल्फ़ में इक रात सोना और बिखर जाना
अगर ऐसे गए तो ज़िंदगी पर हर्फ़ आयेगा
हवाओं से लिपटना तितलियों को चूम कर जाना
धुनक के रख दिया था बादलों को जिन परिंदों ने
उन्हें किसने सिखाया अपने साये से भी डर जाना
कहाँ तक ये दिया बीमार कमरे कि फ़िज़ां बदले
कभी तुम एक मुट्ठी धुप इन ताकों में भर जाना
इसी में आफिअत है घर में अपने चैन से बैठो
किसी कि स्मित जाना हो तो रस्ते में उतर जाना
मुझे भुलाये कभी याद कर के रोये भी
मुझे भुलाये कभी याद कर के रोये भी
वो अपने आप को बिखराये और पिरोये भी
बहुत ग़ुबार भरा था दिलों में दोनों के
मगर वो एक ही बिस्तर पे रात सोये भी
बहुत दिनों से नहाये नहीं हैं आँगन में
कभी तो राह की बारिश हमें भिगोये भी
ये तुमसे किसने कहा रात से मैं डरता हूँ
ज़रूर आये मेरे बाज़ुओं में सोये भी
वो नौजवाँ तो जवानी की नींद में ग़ुम था
बहुत पुकारा, झंझोड़ा, लिपट के रोये भी
यक़ीन जानिये अहसास तक न होगा हमें
नसों में सुईयाँ कोई अगर चुभोये भी
शबनम हूँ सुर्ख़ फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं
शबनम हूँ सुर्ख़ फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं
दिल मोम और धूप में बैठा हुआ हूँ मैं
कुछ देर बाद राख मिलेगी तुम्हें यहाँ
लौ बन के इस चराग़ से लिपटा हुआ हूँ मैं
दो सख़्त खुश्क़ रोटियां कब से लिए हुए
पानी के इन्तिज़ार में बैठा हुआ हूँ मैं
लाठी उठा के घाट पे जाने लगे हिरन
कैसे अजीब दौर में पैदा हुआ हूँ मैं
नस-नस में फैल जाऊँगा बीमार रात की
पलकों पे आज शाम से सिमटा हुआ हूँ मैं
औराक़ में छिपाती थी अक़्सर वो तितलियाँ
शायद किसी किताब में रक्खा हुआ हूँ मैं
दुनिया हैं बेपनाह तो भरपूर ज़िंदगी
दो औरतों के बीच में लेटा हुआ मैं
कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है
कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है
ये दिया अपने अँधेरे में घुटा जाता है
सब समझते हैं वही रात की क़िस्मत होगा
जो सितारा कि बुलन्दी पे नज़र आता है
बिल्डिंगें लोग नहीं हैं जो कहीं भाग सकें
रोज़ इन्सानों का सैलाब बढ़ा जाता है
मैं इसी खोज में बढ़ता ही चला जाता हूँ
किसका आँचल है जो कोहसारों पे लहराता है
मेरी आँखों में है इक अब्र का टुकड़ा शायद
कोई मौसम हो सरे-शाम बरस जाता है
दे तसल्ली जो कोई आँख छलक उठती है
कोई समझाए तो दिल और भी भर आता है
अब्र के खेत में बिजली की चमकती हुई राह
जाने वालों के लिये रास्ता बन जाता है
ज़मीं से आँच ज़मीं तोड़कर निकलती है
ज़मीं से आँच ज़मीं तोड़कर निकलती है
अजीब तिश्नगी* इन बादलों से बरसी है
मेरी निगाह मुख़ातिब से बात करते हुए
तमाम जिस्म के कपड़े उतार लेती है
हमारे अहद* में नायाब हैं बचाये रहो
तुम्हारी आँख में एक चीज़ जो चमकती है
सरों पे धूप की गठरी उठाये फिरते हैं
दिलों में जिनके बड़ी सर्द रात होती है
खड़े-खड़े मैं सफ़र कर रहा हूँ बरसों से
ज़मीन पाँव के नीचे कहाँ ठहरती है
हवा हमारे ही सीने में आये जाए है
बुलंद चाँद सितारे ज़मीन गहरी है
बिखर रही है मेरी रात उसके शानों पर
किसी की सुबह मेरे बाज़ुओं में सोती है
पिघल रही है चट्टानें नहीफ़* बाँहों में
बदन में प्यार कि कैसी अजीब गर्मी है
हवा के आँख नहीं हाथ और पाँव नहीं
इसीलिए वो सभी रास्तों पे चलती है
* तिश्नगी - प्यास
* अहद - युग
* नहीफ़ - कमजोर
हवा में ढूंढ रही है कोई सदा मुझको
हवा में ढूंढ रही है कोई सदा मुझको
पुकारता है पहाड़ों का सिलसिला मुझको
मैं आसमानों ज़मीन कि हदे मिला देता
कोई सितारा अगर झुक के चूमता मुझको
चिपक गए मेरे तलवों से फूल शीशे के
ज़माना खीच रहा था बरहना पा मुझको
वो शहसवार बड़ा रहम दिल था मेरे लिए
बढ़ा के नेज़ा ज़मीन से उठा लिया मुझको
मकान खेत सभी आग कि लपेट में थे
सुनहरी घास में उसने छुपा दिया मुझको
दबीज़ होने लगी सब्ज़ कई कि चादर
न चूम पायेगी अब सरफिरी हवा मुझको
पिला के रात का रस राक्षस बनाती थी
सवेरे लोगो से कहती थी देवता मुझको
तू एक हाथ में ले आग एक में पानी
तमान रात में जला भुजा मुझको
बस एक रात में सर सब्ज़ ये ज़मीन हुई
मिरे खुद ने कहा तक बिछा दिया मुझको
याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम
याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम
कुछ दिनों तक ख़ुदा रहे हैं हम
आरज़ूओं के सुर्ख़ फूलों से
दिल की बस्ती सजा रहे हैं हम
आज तो अपनी ख़ामुशी में भी
तेरी आवाज़ पा रहे हैं हम
बात क्या है कि फिर ज़माने को
याद रह-रह के आ रहे हैं हम
जो कभी लौट कर नहीं आते
वो ज़माने बुला रहे हैं हम
ज़िंदगी अब तो सादगी से मिल
बाद सदियों के आ रहे हैं हम
अब हमें देख भी न पाओगे
इतने नज़दीक आ रहे हैं हम
ग़ज़लें अब तक शराब पीती थीं
नीम का रस पिला रहे हैं हम
धूप निकली है मुद्दतों के बाद
गीले जज़्बे सुखा रहे हैं हम
फ़िक्र की बेलिबास शाख़ों पर
फ़न की पत्ती लगा रहे हैं हम
सर्दियों में लिहाफ़ से चिमटे
चाँद तारों पे जा रहे हैं हम
ज़ीस्त की एक बर्फ़ी लड़की को
’नूरओ नामा’ पढ़ा रहे हैं हम
उस ने पूछा हमारे घर का पता
काफ़ी हाउस बुला रहे हैं हम
कंधे उचका के बात करने में
मुनफ़रद होते जा रहे हैं हम
चुस्त कपड़ों में ज़िस्म जाग पड़े
रूहो-दिल को सुला रहे हैं हम
कोई शोला है कोई जलती आग
जल रहे हैं जला रहे हैं हम
टेढ़ी तहज़ीब, टेढ़ी फ़िक्रो नज़र
टेढ़ी ग़ज़लें सुना रहे हैं हम
आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुजर जाना
आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुजर जाना
शीशे का मुक़द्दर है टकरा के बिखर जाना
तारों कि तरह शब् के सीने में उतर जाना
आहट न हो क़दमों कि इस तरह गुजर जाना
नशे में सँभलने का फन यूँ ही नहीं आता
इन ज़ुल्फ़ों से सीखा है लहरा के संवर जाना
भर जायेंगे आँखों में आँचल से बंधे बादल
याद आएगा जब गुल पर शबनम का बिखर जाना
हर मोड़ पे से दो आँखें हमसे यहीं कहती है
जिस तरह भी मुमकिन हो तुम लौट के घर जाना
पत्थर को मीरा साया आइना सा चमका दे
जाना तो मीरा शीशा यूँ दर्द से भर जाना
ये चाँद सितारे तुम औरों के लिए रख लो
हम को यहीं जीना है हम को यही मर जाना
जब टूट गया रिश्ता सर सब्ज पहाड़ों से
फिर तेज़ हवा जेन किस को है किधर जाना
सर से चादर बदन से क़बा ले गई
सर से चादर बदन से क़बा ले गई
ज़िन्दगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई
मेरी मुठ्ठी में सूखे हुये फूल हैं
ख़ुशबुओं को उड़ा कर हवा ले गई
मैं समुंदर के सीने में चट्टान था
रात एक मौज आई बहा ले गई
हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुये
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई
चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई
मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूस है
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई
सब आने वाले बहला कर चले गए
सब आने वाले बहला कर चले गए
आँखों पर शीशे चमका कर चले गए
मलबे के नीचे आकर मालूम हुआ
सब कैसे दीवार गिराकर चले गए
लोग कभी लौटेंगे राख बटोरेंगे
जंगल में जो आग लगाकर चले गए
मैं था दिन था और एक लंबा रास्ता था
सब खेमे जब लोग उठा कर चले गए
चट्टानों पर आकर ठहरे दो रास्ते
फिर आगे एक राह बना कर चले गए
बर्फ में रक्खी ठंडी बोतल चिपक गयी
खौफ दिलों में लोग दबाकर चल दिए
जब दो नाली ने रुख फेरा सब गाज़ी
अपने अपने हाथ उठा के चले गए
जाने कब डोंगों में महकेंगे तारे
कितने सूरज हाथ धुलाकर चले गए
गारे, चूने, पत्थर के दुश्मन देखो
आहन कि दीवार बनाकर चले गए
Follow @nirajkumarInfo
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में
फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा, कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तिहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं, वो सुना करो, जो सुना नहीं, वो कहा करो
ये ख़िज़ां की ज़र्द-सी शाल में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा
कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां
मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला
तमाम रिश्तों को मैं, घर में छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे, कोई अजनबी न मिला
ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने
बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वही न मिला
बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा, और मुझे कभी न मिला
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते।
पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते।
दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते।
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह है
ये आग लगाते है बुझाने नहीं आते।
क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते।
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते।
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता
कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है
कहा से आई ये खुशबू ये घर की खुशबू है
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है
उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है
तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है
कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये
अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये
समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये
मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाये
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा
बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा
मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
खुदा इस शहर को महफूज़ रखे
ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है
मै तुझसे रोज़ मिलना चाहता हूँ
मगर इस राह में खतरा बहुत है
मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत है
इसे आंसू का एक कतरा न समझो
कुँआ है और ये गहरा बहुत है
उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है
समंदर है मगर प्यासा बहुत है
मै एक लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है
मेरा हँसना ज़रूरी हो गया है
यहाँ हर शख्स संजीदा बहुत है
मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा
मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा
खाक जब खाक में मिल जाऐगी तब पूछेगा
घर बसाने में ये खतरा है कि घर का मालिक
रात में देर से आने का सबब पूछेगा
अपना गम सबको बताना है तमाशा करना,
हाल-ऐ- दिल उसको सुनाएँगे वो जब पूछेगा
जब बिछडना भी तो हँसते हुए जाना वरना,
हर कोई रुठ जाने का सबब पूछेगा
हमने लफजों के जहाँ दाम लगे बेच दिया,
शेर पूछेगा हमें अब न अदब पूछेगा
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएंगे
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएंगे
रोयेंगे बहुत लेकिन आंसू नहीं आयेंगे
कह देना समंदर से हम ओस के मोती है
दरया कि तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धुप के छप्पर हों या छाओं कि दीवारें
अब जो भी उठाएंगे मिल जुल के उठाएंगे
जब साथ न दे कोई आवाज़ हमे देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठाएंगे
खुशबू कि तरह आया वो तेज़ हवाओं में
खुशबू कि तरह आया वो तेज़ हवाओं में
मांगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में
तुम छत पे नहीं आये में घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत भटका सावन कि घटाओं में
इस शहर में एक लड़की बिलकुल है ग़ज़ल जैसी
बिजली सी घटाओं में खुशबू सी हवाओं में
मौसम का इशारा है खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों कि खताओं में
भगवान् ही भेजेंगे चावल से भरी थाली
मज़लूम परिंदों कि मासूम सभाओं में
दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेजी दवाओं में
आंसुओं से धूलि ख़ुशी कि तरह
आंसुओं से धूलि ख़ुशी कि तरह
रिश्ते होते है शायरी कि तरह
हम खुदा बन के आयेंगे वरना
हम से मिल जाओ आदमी कि तरह
बर्फ सीने कि जैसे - जैसे गली
आँख खुलती गयी कली कि तरह
जब कभी बादलों में घिरता हैं
चाँद लगता है आदमी कि तरह
किसी रोज़ किसी दरीचे से
सामने आओ रोशनी कि तरह
सब नज़र का फरेब है वरना
कोई होता नहीं किसी कि तरह
ख़ूबसूरत उदास ख़ौफ़ज़दा
वोह भी है बीसवीं सदी कि तरह
जानता हूँ कि एक दिन मुझको
वो बदल देगा डायरी कि तरह
है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है
है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिज़ाज सी शाम है
कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें
ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मतलबों का सलाम है
यूँ ही रोज़ मिलने कि आरज़ू बड़ी रख रखाव कि गुफ्तगू
ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है
वो दिलों में आग लगायेगा में दिलों कि आग बुझाऊंगा
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है
न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल कर
कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज कि शाम कर
कोई नग्मा धुप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम कि छाँव सा
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है
किसे खबर थी तुझे इस तरह सजाऊंगा
किसे खबर थी तुझे इस तरह सजाऊंगा
ज़माना देखेगा और में ना देख पाउँगा
हयातो मौत फिराको विसाल सब यकजा
मैं एक रात में कितने दिये जलाऊँगा
पला बड़ा हूँ अभी तक इन्ही अंधेरों में
मैं तेज़ धुप से कैसे नज़र मिलाऊंगा
मिरे मिज़ाज कि ये मादराना फितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत* मैं भूल जाऊँगा
तुम एक पेड़ से वाबस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ बहुत दूर दूर जाऊँगा
मीरा ये अहद है मैं आज शाम होने तक
जहाँ से रिज़क लिखा है वहीँ से लाऊंगा
* अज़ीयत - दुःख
कोई न जान सका वो कहाँ से आया था
कोई न जान सका वो कहाँ से आया था
और उसने धुप से बादल को क्यों मिलाया था
यह बात लोगों को शायद पसंद आयी नहीं
मकान छोटा था लेकिन बहुत सजाया था
वो अब वहाँ हैं जहाँ रास्ते नहीं जाते
मैं जिसके साथ यहाँ पिछले साल आया था
सुना है उस पे चहकने लगे परिंदे भी
वो एक पौधा जो हमने कभी लगाया था
चिराग़ डूब गए कपकपाये होंठों पर
किसी का हाथ हमारे लबों तक आया था
तमाम उम्र मेरा दम इसी धुएं में घुटा
वो एक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया था
बाहर ना आओ घर में रहो तुम नशे में हो
बाहर ना आओ घर में रहो तुम नशे में हो
सो जाओ दिन को रात करो तुम नशे में हो
दरिया से इख्तेलाफ़ का अंजाम सोच लो
लहरों के साथ साथ बहो तुम नशे में हो
बेहद शरीफ लोगो से कुछ फासला रखो
पी लो मगर कभी ना कहो तुम नशे में हो
कागज का ये लिबास चिरागों के शहर में
जरा संभल संभल कर चलो तुम नशे में हो
क्या दोस्तों ने तुम को पिलाई है रात भर
अब दुश्मनों के साथ रहो तुम नशे में हो
चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ
चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ
मैं न इस बात पे नाज़ाँ हूँ न शर्मिंदा हूँ
दफ़न हो जाएगा जो सैंकड़ों मन मिट्टी में
ग़ालिबन मैं भी उसी शहर का बाशिन्दा हूँ
ज़िंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन
लोग कहते हैं कि मैं तेरा नुमाइन्दा हूँ
फूल सी क़ब्र से अक्सर ये सदा आती है
कोई कहता है बचा लो मैं अभी ज़िन्दा हूँ
तन पे कपड़े हैं क़दामत की अलामत और मैं
सर बरहना यहाँ आ जाने पे शर्मिंदा हूँ
वाक़ई इस तरह मैंने कभी सोचा ही नहीं
कौन है अपना यहाँ किस के लिये ज़िन्दा हूँ
गुलों कि तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना
गुलों कि तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना
किसी कि ज़ुल्फ़ में इक रात सोना और बिखर जाना
अगर ऐसे गए तो ज़िंदगी पर हर्फ़ आयेगा
हवाओं से लिपटना तितलियों को चूम कर जाना
धुनक के रख दिया था बादलों को जिन परिंदों ने
उन्हें किसने सिखाया अपने साये से भी डर जाना
कहाँ तक ये दिया बीमार कमरे कि फ़िज़ां बदले
कभी तुम एक मुट्ठी धुप इन ताकों में भर जाना
इसी में आफिअत है घर में अपने चैन से बैठो
किसी कि स्मित जाना हो तो रस्ते में उतर जाना
मुझे भुलाये कभी याद कर के रोये भी
मुझे भुलाये कभी याद कर के रोये भी
वो अपने आप को बिखराये और पिरोये भी
बहुत ग़ुबार भरा था दिलों में दोनों के
मगर वो एक ही बिस्तर पे रात सोये भी
बहुत दिनों से नहाये नहीं हैं आँगन में
कभी तो राह की बारिश हमें भिगोये भी
ये तुमसे किसने कहा रात से मैं डरता हूँ
ज़रूर आये मेरे बाज़ुओं में सोये भी
वो नौजवाँ तो जवानी की नींद में ग़ुम था
बहुत पुकारा, झंझोड़ा, लिपट के रोये भी
यक़ीन जानिये अहसास तक न होगा हमें
नसों में सुईयाँ कोई अगर चुभोये भी
शबनम हूँ सुर्ख़ फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं
शबनम हूँ सुर्ख़ फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं
दिल मोम और धूप में बैठा हुआ हूँ मैं
कुछ देर बाद राख मिलेगी तुम्हें यहाँ
लौ बन के इस चराग़ से लिपटा हुआ हूँ मैं
दो सख़्त खुश्क़ रोटियां कब से लिए हुए
पानी के इन्तिज़ार में बैठा हुआ हूँ मैं
लाठी उठा के घाट पे जाने लगे हिरन
कैसे अजीब दौर में पैदा हुआ हूँ मैं
नस-नस में फैल जाऊँगा बीमार रात की
पलकों पे आज शाम से सिमटा हुआ हूँ मैं
औराक़ में छिपाती थी अक़्सर वो तितलियाँ
शायद किसी किताब में रक्खा हुआ हूँ मैं
दुनिया हैं बेपनाह तो भरपूर ज़िंदगी
दो औरतों के बीच में लेटा हुआ मैं
कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है
कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है
ये दिया अपने अँधेरे में घुटा जाता है
सब समझते हैं वही रात की क़िस्मत होगा
जो सितारा कि बुलन्दी पे नज़र आता है
बिल्डिंगें लोग नहीं हैं जो कहीं भाग सकें
रोज़ इन्सानों का सैलाब बढ़ा जाता है
मैं इसी खोज में बढ़ता ही चला जाता हूँ
किसका आँचल है जो कोहसारों पे लहराता है
मेरी आँखों में है इक अब्र का टुकड़ा शायद
कोई मौसम हो सरे-शाम बरस जाता है
दे तसल्ली जो कोई आँख छलक उठती है
कोई समझाए तो दिल और भी भर आता है
अब्र के खेत में बिजली की चमकती हुई राह
जाने वालों के लिये रास्ता बन जाता है
ज़मीं से आँच ज़मीं तोड़कर निकलती है
ज़मीं से आँच ज़मीं तोड़कर निकलती है
अजीब तिश्नगी* इन बादलों से बरसी है
मेरी निगाह मुख़ातिब से बात करते हुए
तमाम जिस्म के कपड़े उतार लेती है
हमारे अहद* में नायाब हैं बचाये रहो
तुम्हारी आँख में एक चीज़ जो चमकती है
सरों पे धूप की गठरी उठाये फिरते हैं
दिलों में जिनके बड़ी सर्द रात होती है
खड़े-खड़े मैं सफ़र कर रहा हूँ बरसों से
ज़मीन पाँव के नीचे कहाँ ठहरती है
हवा हमारे ही सीने में आये जाए है
बुलंद चाँद सितारे ज़मीन गहरी है
बिखर रही है मेरी रात उसके शानों पर
किसी की सुबह मेरे बाज़ुओं में सोती है
पिघल रही है चट्टानें नहीफ़* बाँहों में
बदन में प्यार कि कैसी अजीब गर्मी है
हवा के आँख नहीं हाथ और पाँव नहीं
इसीलिए वो सभी रास्तों पे चलती है
* तिश्नगी - प्यास
* अहद - युग
* नहीफ़ - कमजोर
हवा में ढूंढ रही है कोई सदा मुझको
हवा में ढूंढ रही है कोई सदा मुझको
पुकारता है पहाड़ों का सिलसिला मुझको
मैं आसमानों ज़मीन कि हदे मिला देता
कोई सितारा अगर झुक के चूमता मुझको
चिपक गए मेरे तलवों से फूल शीशे के
ज़माना खीच रहा था बरहना पा मुझको
वो शहसवार बड़ा रहम दिल था मेरे लिए
बढ़ा के नेज़ा ज़मीन से उठा लिया मुझको
मकान खेत सभी आग कि लपेट में थे
सुनहरी घास में उसने छुपा दिया मुझको
दबीज़ होने लगी सब्ज़ कई कि चादर
न चूम पायेगी अब सरफिरी हवा मुझको
पिला के रात का रस राक्षस बनाती थी
सवेरे लोगो से कहती थी देवता मुझको
तू एक हाथ में ले आग एक में पानी
तमान रात में जला भुजा मुझको
बस एक रात में सर सब्ज़ ये ज़मीन हुई
मिरे खुद ने कहा तक बिछा दिया मुझको
याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम
याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम
कुछ दिनों तक ख़ुदा रहे हैं हम
आरज़ूओं के सुर्ख़ फूलों से
दिल की बस्ती सजा रहे हैं हम
आज तो अपनी ख़ामुशी में भी
तेरी आवाज़ पा रहे हैं हम
बात क्या है कि फिर ज़माने को
याद रह-रह के आ रहे हैं हम
जो कभी लौट कर नहीं आते
वो ज़माने बुला रहे हैं हम
ज़िंदगी अब तो सादगी से मिल
बाद सदियों के आ रहे हैं हम
अब हमें देख भी न पाओगे
इतने नज़दीक आ रहे हैं हम
ग़ज़लें अब तक शराब पीती थीं
नीम का रस पिला रहे हैं हम
धूप निकली है मुद्दतों के बाद
गीले जज़्बे सुखा रहे हैं हम
फ़िक्र की बेलिबास शाख़ों पर
फ़न की पत्ती लगा रहे हैं हम
सर्दियों में लिहाफ़ से चिमटे
चाँद तारों पे जा रहे हैं हम
ज़ीस्त की एक बर्फ़ी लड़की को
’नूरओ नामा’ पढ़ा रहे हैं हम
उस ने पूछा हमारे घर का पता
काफ़ी हाउस बुला रहे हैं हम
कंधे उचका के बात करने में
मुनफ़रद होते जा रहे हैं हम
चुस्त कपड़ों में ज़िस्म जाग पड़े
रूहो-दिल को सुला रहे हैं हम
कोई शोला है कोई जलती आग
जल रहे हैं जला रहे हैं हम
टेढ़ी तहज़ीब, टेढ़ी फ़िक्रो नज़र
टेढ़ी ग़ज़लें सुना रहे हैं हम
आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुजर जाना
आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुजर जाना
शीशे का मुक़द्दर है टकरा के बिखर जाना
तारों कि तरह शब् के सीने में उतर जाना
आहट न हो क़दमों कि इस तरह गुजर जाना
नशे में सँभलने का फन यूँ ही नहीं आता
इन ज़ुल्फ़ों से सीखा है लहरा के संवर जाना
भर जायेंगे आँखों में आँचल से बंधे बादल
याद आएगा जब गुल पर शबनम का बिखर जाना
हर मोड़ पे से दो आँखें हमसे यहीं कहती है
जिस तरह भी मुमकिन हो तुम लौट के घर जाना
पत्थर को मीरा साया आइना सा चमका दे
जाना तो मीरा शीशा यूँ दर्द से भर जाना
ये चाँद सितारे तुम औरों के लिए रख लो
हम को यहीं जीना है हम को यही मर जाना
जब टूट गया रिश्ता सर सब्ज पहाड़ों से
फिर तेज़ हवा जेन किस को है किधर जाना
सर से चादर बदन से क़बा ले गई
सर से चादर बदन से क़बा ले गई
ज़िन्दगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई
मेरी मुठ्ठी में सूखे हुये फूल हैं
ख़ुशबुओं को उड़ा कर हवा ले गई
मैं समुंदर के सीने में चट्टान था
रात एक मौज आई बहा ले गई
हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुये
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई
चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई
मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूस है
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई
सब आने वाले बहला कर चले गए
सब आने वाले बहला कर चले गए
आँखों पर शीशे चमका कर चले गए
मलबे के नीचे आकर मालूम हुआ
सब कैसे दीवार गिराकर चले गए
लोग कभी लौटेंगे राख बटोरेंगे
जंगल में जो आग लगाकर चले गए
मैं था दिन था और एक लंबा रास्ता था
सब खेमे जब लोग उठा कर चले गए
चट्टानों पर आकर ठहरे दो रास्ते
फिर आगे एक राह बना कर चले गए
बर्फ में रक्खी ठंडी बोतल चिपक गयी
खौफ दिलों में लोग दबाकर चल दिए
जब दो नाली ने रुख फेरा सब गाज़ी
अपने अपने हाथ उठा के चले गए
जाने कब डोंगों में महकेंगे तारे
कितने सूरज हाथ धुलाकर चले गए
गारे, चूने, पत्थर के दुश्मन देखो
आहन कि दीवार बनाकर चले गए
No comments:
Post a Comment