Wednesday 28 October 2015

अज़ीज़ लखनवी


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1

उनको सोते हुए देखा था दमे-सुबह* कभी
क्या बताऊं जो इन आंखों ने समां देखा था

*दमे-सुबह = सुबह के वक्त 

Unko sote hue dekha tha dame-subah kabhi
Kya bataaun jo in aankhon ne sama dekha tha 

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2

पैदा वो बात कर की तुझे रोये दूसरे 
रोना खुद ये अपने हाल पे जार जार क्या 

Paida wo baat kar ki tujhe roye dusare 
Rona khud ye apne haal pe zaar zaar kya
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3

तुम ने छेड़ा तो कुछ खुले हम भी 
बात पर बात याद आती है 

Tumne cheda to kuch khule ham bhi
Baat par baat yaad aati hai 

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4

जबान दिल की हकीकत को क्या बयां करती 
किसी का हाल किसी से कहा नहीं जाता 

Jaban dil ki haqiqat ko kya bayan karti
Kisi ka haal kisi se kaha nahin jata 

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5

अपने मरकज़* की तरफ माइल--परवाज़* था हुस्न 
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का 

* मरकज़  =  केंद्र 
* माइल--परवाज़  =  उड़ान भरने के लिए झुकना 

Apne marqaj ki taraf maaial-e-parwaz tha husan
Bhoolta hi nahin aalam tiri angadaai ka 

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6

इतना तो सोच जालिम जौरो-जफा* से पहले
यह रस्म दोस्ती की दुनिया से उठ जायेगी

*जौरो-जफा - अत्याचार, अन्याय, जुल्मो-सितम
Itana to soch zalim jauro-jafa se pahale
Yah rasm dosti ki duniya se uth jayegi

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7

हमेशा तिनके ही चुनते गुजर गई अपनी 
मगर चमन में कहीं आशियाँ बना ना सके 

Hamesha tinke hi chunte gujar gai apni
Magar chaman mein kahin aashiyan bana na sake 

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8
एक मजबूर की तमन्ना क्या
रोज जीती है, रोज मरती है

Ek majboor ki tamnna kya 
Roz jeeti hai, roz marti hai 

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9
कफन बांधे हुए सर से आये हैं वर्ना
हम और आप से इस तरह गुफ्तगू करते
जवाब हजरते*-नासेह* को हम भी कुछ देते
जो गुफ्तगू के तरीके से गुफ्तगू करते

*हजरत - किसी बड़े व्यक्ति के नाम से पहले सम्मानार्थ लगाया जाने वाला शब्द
*नासेह - नसीहत करने वाला, सदुपदेशक

Kafan bandhe hue sar se aaye hain warna
Ham aur aap se is tarah guftgoo karte
Jawab hazrate-naseh ko ham bhi kuch dete 
Jo guftgoo ke tarike se guftgoo karte 

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10
कफस* में जी नहीं लगता है, आह फिर भी मेरा
 यह जानता हूँ कि तिनका भी आशियाँ में नहीं

 *कफस  =  पिंजरा, कारागार


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