Wednesday 9 August 2017

अदम गोंडवी - सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद* है
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है

कोठियों से मुल्क के मेआर* को मत आंकिए
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पे आबाद है

जिस शहर में मुंतजिम* अंधे हो जल्वागाह के
उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है

ये नई पीढ़ी पे मबनी* है वहीं जज्मेंट दे
फल्सफा गांधी का मौजूं* है कि नक्सलवाद है

यह गजल मरहूम मंटों की नजर है, दोस्तों
जिसके अफसाने में ठंडे गोश्त की रुदाद* है

* नाशाद - उदास, दुखी 
* मेआर  - मापदंड, रूतबा 
* मुन्तज़िम - व्यवस्थापक 
* मबनी  - निर्भर 
* मौजूं - उचित, उपयुक्त 
* रूदाद - विवरण, वृतांत 


अदम गोंडवी