Wednesday 9 August 2017

अदम गोंडवी - सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद* है
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है

कोठियों से मुल्क के मेआर* को मत आंकिए
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पे आबाद है

जिस शहर में मुंतजिम* अंधे हो जल्वागाह के
उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है

ये नई पीढ़ी पे मबनी* है वहीं जज्मेंट दे
फल्सफा गांधी का मौजूं* है कि नक्सलवाद है

यह गजल मरहूम मंटों की नजर है, दोस्तों
जिसके अफसाने में ठंडे गोश्त की रुदाद* है

* नाशाद - उदास, दुखी 
* मेआर  - मापदंड, रूतबा 
* मुन्तज़िम - व्यवस्थापक 
* मबनी  - निर्भर 
* मौजूं - उचित, उपयुक्त 
* रूदाद - विवरण, वृतांत 


अदम गोंडवी 

Wednesday 28 October 2015

अदम गोंडवी - वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं

वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं

वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागे आस्‍था विश्‍वास लेकर क्‍या करें

लोकरंजन हो जहां शम्‍बूक-वध की आड़ में
उस व्‍यवस्‍था का घृणित इतिहास लेकर क्‍या करें

कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्‍या करें

बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्‍स का एहसास लेकर क्‍या करें

गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्‍यार का मधुमास लेकर क्‍या करें


अदम गोंडवी